Sunday, April 5, 2020

भूख

"बहुत तेज़ भूख लगी है मां कुछ खाने को दो न, मां झ्ट से कुछ भी लाकर खिला दे" और मां कुछ न कुछ ले ही आती खिलाने को । कितना अच्छा था न वो बचपन जब सब कुछ बना बनाया मिल जाता था । ज्यों ज्यों बड़े हुए अपनों से दूर होते चले गए , कभी पढ़ाई के नाम पर हॉस्टल कभी कंपीटीटिव एग्जाम की अच्छी तैयारी के लिए अपने शहर से दूर कभी नौकरी के लिए कभी उन्हीं नौकरियों के तबादले की वजह से, पीछे कितना कुछ छूट जाता है यार दोस्त शहर कस्बे गली गांव, बस छूटती नहीं है तो ये पेट की ' भूख' ।  
मां यहां सब कुछ मिलता है दूध दही घी पापड़ अचार चावल दाल सब कुछ, पर नहीं मिलता है तो वो है तेरे हाथ का स्वाद । याद है बचपन में मुझे जब सोयेबीन की सब्जी खाना पसंद नहीं था तो कैसे तुमने मुझे ये रसगुल्ला है समझाकर सोयाबीन खिलाया । खुद बना लूं  चाहे कितने ही अच्छे तरीके से बना लू सोयाबीन रसगुल्ला जैसा स्वाद नहीं देता । आज खाना खा लिया है मैंने पर पता नहीं आज भूखा ही क्यों महसूस कर रहा हूं शायद आज भूखा हूं तेरी लाड का तेरे प्यार का । सब कुछ तो मिल जाता है यहां पर पता नहीं क्यों आज भी पनीर वाली सब्जी -रोटी भी वो स्वाद नहीं दे पाती जो तेरे हाथ की बासी रोटी और चाय दे जाती है। 

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