Wednesday, April 15, 2020

विचार

भारतीय स्त्रियों की दशा के बारे में हर कोई लिखता है.. इन दशाओं के कई कारण हैं, उनमें से एक कारण हमारी शिक्षा व्यवस्था भी है.. आज भी बच्चों की पाठ्य पुस्तक में महिलाओं का पहला चित्रण घर में ही किया जाता है.. आप किसी भी हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रम को उठा कर देख लें.. अधिकतर कहानियों में मां का चित्रण घर के आसपास के ही वातावरण में सिमटा हुआ मिलेगा.. उन्हें गृहणी के रूप में ही प्रस्तुत किया जाता रहा है.. बच्चों के मन में मां का मतलब घर पर रहकर सबके लिए खाना पकाने वाली सबकी देखभाल करने वाली के रूप में शुरुआत से ही कर दिया जाता रहा है.. धीरे धीरे ये बात मन में घर करने लगती है.. जो आगे चलकर कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में प्रदर्शित होती है.. 

अब जरूरत है इस तरह के पाठ्यक्रमों में बदलाव की.. ताकि बच्चों के मन में मां का मतलब सिर्फ गृहणी नहीं होना चाहिए.. कार्यालयों मे काम करने वाली महिलाओं के विषय में लिखकर उसे कहानी के रूप में पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए..

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