साथी, दोस्त, यार, मित्र, मित, सखा चाहे जिस भी नाम से कह लो,
साथी, जीवन का वो अभिन्न किरदार जो कभी कभी हमारा किरदार निर्धारित कर जाता है। साथी को साथी कहते हैं क्योंकि कभी कभी दुनियां के सारे रिश्ते नाते टूट जाने के बाद भी ये आपके साथ रहता है। बाकि रिश्ते नाते हमें जन्म से मिलते हैं लेकिन साथी हम खुद चुनते हैं। कभी बस में बगल की सीट पर सफ़र करने वाला भी आपके मन में इस तरह अपना घर बना जाता है कि आप सफ़र के साथ साथ उसके साथी हो जाते हैं। जीवन के हर पड़ाव में आपको साथी, दोस्त, मित्र, सखा की जरूरत पड़ती है । शिशु अवस्था से ही आपकी मां आपके पिता आपके बड़े भाई बड़ी बहन आपकी सखा होती हैं। थोड़े बड़े होने पर गांव समाज के हमउम्र बच्चे आपके दोस्त हो जाते हैं । स्कूल, कॉलेज ऑफिस हर जगह हमारे साथ हमारा कोई न कोई सखा जरूर होता है चाहे वो स्कूल का किसी बड़े घर का बच्चा हो या ऑफिस का दफ्तरी ही क्यों न हो । हम हमेशा खुद को घिरे रखना चाहते हैं अपने दोस्तों के बीच अपने परिवार के बीच।
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